महाराष्ट्र
तंत्रस्नेही शिक्षक समूह 🖥️ |
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🇮🇳 गाथा
बलिदानाची 🇮🇳 |
▬ ❚❂❚❂❚ ▬ संकलन : सुनिल हटवार ब्रम्हपुरी, |
चंद्रपूर 9403183828
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🏇 रानी
अवंतीबाई लोधी🤺 |
(प्रथम महिला शहीद) |
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जन्म : 16
आॕगष्ट
1831 |
(ग्राम मनकेड़ी, जिला
सिवनी, मध्य प्रदेश) |
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मृत्यु : 20
मार्च 1858 |
(देवहारगढ़, मध्य
प्रदेश) |
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आन्दोलन : भारतीय स्वतंत्रता |
संग्राम |
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रानी अवंतीबाई लोधी भारत के
प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली प्रथम महिला शहीद
वीरांगना थीं। 1857 की क्रांति में रामगढ़ की रानी अवंतीबाई
रेवांचल में मुक्ति आंदोलन की सूत्रधार थी। 1857
के मुक्ति आंदोलन में इस राज्य की अहम भूमिका थी, जिससे
इतिहास जगत अनभिज्ञ है। 1817 से 1851 तक रामगढ़
राज्य के शासक लक्ष्मण सिंह थे। उनके निधन के बाद विक्रमादित्य सिंह ने राजगद्दी
संभाली। उनका विवाह बाल्यावस्था में ही मनकेहणी के जमींदार राव जुझार सिंह की
कन्या अवंती बाई से हुआ। विक्रमादित्य सिंह बचपन से ही वीतरागी प्रवृत्ति के थे
और पूजा-पाठ एवं धार्मिक अनुष्ठानों में लगे रहते। अत: राज्य संचालन का काम उनकी
पत्नी रानी अवंतीबाई ही करती रहीं। उनके दो पुत्र हुए-अमान सिंह और शेर सिंह।
अंग्रेजों ने तब तक भारत के अनेक भागों में अपने पैर जमा लिए थे। |
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🔨 कोर्ट ऑफ़
वार्ड्स (1853) |
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रामगढ़ के राजा विक्रमाजीत सिंह को विक्षिप्त
तथा अमान सिंह और शेर सिंह को नाबालिग घोषित कर रामगढ़ राज्य को हड़पने की
दृष्टि से अंग्रेज शासकों ने "कोर्ट ऑफ वार्ड्स" की कार्यवाही की एवं
राज्य के प्रशासन के लिए सरबराहकार नियुक्त कर शेख मोहम्मद तथा मोहम्मद
अब्दुल्ला को रामगढ़ भेजा।" जिससे रामगढ़ रियासत "कोर्ट ऑफ
वार्ड्स" के कब्जे में चली गयी। अंग्रेज शासकों की इस हड़प नीति का परिणाम
भी रानी जानती थी, फिर भी दोनों सरबराहकारों को उन्होंने रामगढ़
से बाहर निकाल दिया। 1855 ई. में राजा विक्रमादित्य सिंह की एक
दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। अब नाबालिग पुत्रों की संरक्षिका के रूप में राज्य
शक्ति रानी के हाथों आ गयी। रानी ने राज्य के कृषकों को अंग्रेजों के निर्देशों
को न मानने का आदेश दिया, इस सुधार कार्य से रानी की लोकप्रियता बढ़ी। |
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🏯 क्षेत्रीय
सम्मेलन (मई, 1857) |
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1857 ईस्वी में
सागर एवं नर्मदा परिक्षेत्र के निर्माण के साथ अंंग्रेजों की शक्ति में वृद्धि
हुई। अब अंग्रेजों को रोक पाना किसी एक राजा या तालुकेदार के वश का नहीं रहा।
रानी ने राज्य के आस-पास के राजाओं,
परगनादारों, जमींदारों
और बड़े मालगुजारों का विशाल सम्मेलन रामगढ़ में आयोजित किया, जिसकी
अध्यक्षता गढ़ पुरवा के राजा शंकरशाह ने की। इस गुप्त सम्मेलन के बारे में
जबलपुर के कमिश्नर मेजर इस्काइन और मण्डला के डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन को भी
पता नहीं था। गुप्त सम्मेलन में लिए गए निर्णय के अनुसार प्रचार का दायित्व रानी
पर था। एक पत्र और दो काली चूड़ियों की एक पुड़िया बनाकर प्रसाद के रूप में
वितरित करना। पत्र में लिखा गया- "अंग्रेजों से संघर्ष के लिए तैयार रहो या
चूड़ियां पहनकर घर में बैठो।" पत्र सौहार्द और एकजुटता का प्रतीक था तो चूड़ियां
पुरुषार्थ जागृत करने का सशक्त माध्यम बनी। पुड़िया लेने का अर्थ था अंग्रेजों
के विरुद्ध क्रांति में अपना समर्थन देना। |
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🎯 क्रांति का
प्रारंभ |
देश के कुछ क्षेत्रों में क्रांति का शुभारम्भ हो चुका था। 1857
में 52वीं देशी पैदल सेना जबलपुर सैनिक केन्द्र की
सबसे बड़ी शक्ति थी। 18 जून को इस सेना के एक सिपाही ने अंग्रेजी
सेना के एक अधिकारी पर घातक हमला किया। जुलाई 1857
में मण्डला के परगनादार उमराव सिंह ठाकुर ने कर देने से इनकार कर दिया और इस बात
का प्रचार करने लगा कि अंग्रेजों का राज्य समाप्त हो गया। अंग्रेज, विद्रोहियों
को डाकू और लुटेरे कहते थे। मण्डला के डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन ने मेजर इस्काइन
से सेना की मांग की। पूरे महाकौशल क्षेत्र में विद्रोहियों की हलचलें बढ़ गईं।
गुप्त सभाएं और प्रसाद की पुड़ियों का वितरण चलता रहा। इस बीच राजा शंकरशाह और
राजकुमार रघुनाथ शाह को दिए गए मृत्युदण्ड से अंग्रेजों की नृशंसता की व्यापक
प्रतिक्रिया हुई। वे इस क्षेत्र के राज्यवंश के प्रतीक थे। इसकी प्रथम प्रतिक्रिया
रामगढ़ में हुई। रामगढ़ के सेनापति ने भुआ बिछिया थाना में चढ़ाई कर दी। जिससे
थाने के सिपाही थाना छोड़कर भाग गए और विद्रोहियों ने थाने पर अधिकार कर लिया।
रानी के सिपाहियों ने घुघरी पर चढ़ाई कर उस पर अपना अधिकार कर लिया और वहां के
तालुकेदार धन सिंह की सुरक्षा के लिए उमराव सिंह को जिम्मेदारी सौंपी। रामगढ़ के
कुछ सिपाही एवं मुकास के जमींदार भी नारायणगंज पहुंचकर जबलपुर-मण्डला मार्ग को
बंद कर दिया। इस प्रकार पूरा जिला और रामगढ़ राज्य में विद्रोह भड़क चुका था और
वाडिंग्टन विद्रोहियों को कुचलने में असमर्थ हो गया था। वह विद्रोहियों की
गतिविधियों से भयभीत हो चुका था। |
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🏇 खैरी युद्ध |
(23 नवम्बर 1857) |
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मण्डला नगर को छोड़कर पूरा जिला स्वतंत्र हो
चुका था। अवंती बाई ने मण्डला विजय के लिए सिपाहियों सहित प्रस्थान किया। रानी
की सूचना प्राप्त होने पर शहपुरा और मुकास के जमींदार भी मण्डला की और रवाना
हुए। मण्डला पहुंचने के पूर्व खड़देवरा के सिपाही भी रानी के सिपाहियों से मिल
गए। खैरी के पास अंग्रेज सिपाहियों के साथ अवंती बाई का युद्ध हुआ। वाडिंग्टन
पूरी शक्ति लगाने के बाद भी कुछ न कर सका और मण्डला छोड़ सिवनी की ओर भाग गया।
इस प्रकार पूरा मण्डला जिला एवं रामगढ़ राज्य स्वतंत्र हो गया। इस विजय के
उपरांत आन्दोलनकारियों की शक्ति में कमी आ गई, किन्तु
उल्लास में कमी नहीं आयी। रानी रामगढ़ वापस हो गईं। |
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⏳ घुघरी में अंग्रेजों का |
नियंत्रण |
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वाडिंग्टन ने फिर से रामगढ़ के लिए प्रस्थान
किया। इसकी जानकारी रानी को मिल गई। रामगढ़ के कुछ सिपाही घुघरी के पहाड़ी
क्षेत्र में पहुंचकर अंग्रेजी सेना की प्रतीक्षा करने लगे। लेफ्टिनेंट वर्टन के
नेतृत्व में नागपुर की सेनाएं बिछिया विजय कर रामगढ़ की ओर बढ़ रही हैं, इसकी
जानकारी वाडिंग्टन को थी, अत: वाडिंग्टन घुघरी की ओर बढ़ा। 15
जनवरी 1858 को घुघरी पर अंग्रेजों का नियंत्रण हो गया। |
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⚔ रामगढ़ का पराभव |
(मार्च, 1858) |
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मार्च, 1858 के दूसरे
सप्ताह के आस-पास रामगढ़ घिर गया। विद्रोहियों एवं अंग्रेजी सेना में संघर्ष
चलता रहा। विद्रोही सिपाहियों की संख्या में निरंतर कमी आती जा रही थी। किले की
दीवारें भी रह-रहकर ध्वस्त होती गई। अत: रानी अंग्रेजी सेना का घेरा तोड़ जंगल
में प्रवेश कर गई। रामगढ़ के शेष सिपाहियों ने एक सप्ताह तक अंग्रेजी सेना को
रोके रखा। तब तक रानी बुढ़ार होती हुईं देवहारगढ़ पहुंच गई। अंग्रेजी सेनाओं ने
रामगढ़ किले को ध्वस्त कर दिया और रामगढ़ पर अधिकार कर लिया। |
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🇮🇳 जयहिंद
🇮🇳 |
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🌹🙏 विनम्र
अभिवादन 🙏🌷 |
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